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रक्तबीज राक्षस की संहारक मां कालरात्रि की पूजा आज, जाने क्या है पूजा का विधान

3 अक्टूबर को शुरू हुई नवरात्रि का आज सातवां दिन है। सातवें दिन का महत्व नवरात्रि पूजन में बेहद खास स्थान रखता है। आज से माता नजर और मुख दर्शन के लिए खुल जाएंगे और दुर्गा पूजा के मेला की आधिकारिक शुरू हो जाएगी।

अब नवरात्रि अपने चरम पर है और आज के समापन की ओर बढ़ चलेगी। नवरात्रि के सातवें मां कालरात्रि की पूजा और आराधना का विधान है। मां दुर्गा का यह सातवां स्वरूप जीवन के महान सत्य काल यानी मृत्यु के सत्य का साक्षात्कार कराता है।

ऐसा है मां कालरात्रि का रूप

मां कालरात्रि का स्वरूप भीषण और विकराल है. वे काले रंग की हैं, लेकिन यह रूप और रंगसदैव शुभ फल देने वाला है। इनके नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयंकर है। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। कालरात्रिअंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं। इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ यानी गदहे की सवारी करती हैं।

ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है, जो कहता है कि भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।

मां कालरात्रि की कथा

एक समय तीनों लोकों में शुंभ-निशुंभ दैत्य और रक्तबीज राक्षस ने हाहाकार मचा रखा था। तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। इसके बाद मां ने चंड-मुंड का वध किया और मां चंडी कहलायीं।

मां ने किया रक्तबीज का संहार

जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से और लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। मां जितने रत्क्बीजों को मारतीं, उसका रक्त जमीन पर गिरते ही एक नया रक्तबीज बन जाता। यह देख मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने गला काटते हुए सारे रक्तबीज का वध कर दिया।

ऐसे करें मां कालरात्रि की पूजा

  • नवरात्रि के सातवें दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
  • साथ ही इसके बाद गणेश वंदना करें। अब रोली, अक्षत, दीप, धूप अर्पित करें।
  • साथ ही मां कालरात्रि का चित्र या तस्वीर स्थापित करें। वहीं अगर कालरात्रि की तस्वीर नही है तो मां दुर्गा का जो चित्र स्थापित है। उसकी ही पूजा करें।
  • इसके बाद मां कालरात्रि को रातरानी का फूल चढाएं। गुड़ का भोग अर्पित करें। फिर मां की आरती करें।
  • इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा तथा मंत्र जपें। इस दिन लाल कंबल के आसन तथा लाला चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करेंअगर लाला चंदन की माला उपलब्ध न हो तो रूद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।

मां कालरात्रि मंत्र

1. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

2. एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

3. वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।