लच्छीबंध तालाब मामले में सीएमओ का हास्यास्पद बयान, तालाब की बेशकीमती भूमि पर भू-माफियाओं को टेढ़ी नजर, प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप
0 तालाब को निजी बताकर साफ-सफाई और नाली के पानी को जाने से रोकने के पक्ष में नहीं
चांपा। शहर के लच्छीबंध तालाब में नाली का पानी जाने के मामले में कार्रवाई करने के बजाय उसे निजी बताकर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, जबकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट गाइड लाइन है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी जलस्रोत या निस्तारी तालाब के स्वरूप को बदला नहीं जा सकता। साथ तालाब के संरक्षण और बेजाकब्जा के मामले में उचित कदम उठानाा चाहिए। खास बात यह है कि नगरपालिका सीएमओ सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन से या तो अंजान है या फिर जानबुझकर मामले को तूल दे रहे हैं।
आपकों बता दें कि शहर के हृदयस्थल में स्थित इस लच्छीबंध तालाब पर भू-माफियों की टेढ़ी नजर शुरू से ही है। पहले ही तालाब के पार में बेजाकब्जा करा दिया गया है, जिस पर प्रशासन की मौन स्वीकृति रही। यही वजह है कि तालाब की भूमि में बेजाकब्जा कर आलीशान कई दुकानें चलाई जा रही है। भू-माफिया इस फिराक में है कि पहले तालाब के पार में लाइन से दुकानें खुलवाकर तालाब को गंदगी से युक्त किया जाए, ताकि धीरे धीरे लोग इस तालाब में निस्तार करना छोड़ दें। फिर प्रशासन इस तालाब को अनुपयोगी घोषित करंे ओर भू-माफियाओं की कुटिल चाल पूरी हो जाए। शहर के हृदयस्थल पर स्थित तालाब की यह भूमि भू-माफियाओं के लिए किसी हीरे के खान से कम नहीं है। इसीलिए तरह-तरह का उपक्रम कर तालाब के अस्तित्व को समाप्त करने का दुस्साहस किया जा रहा है और इस कार्य में प्रशासन भू-माफियाओं का ही साथ देते नजर आ रहा है।
डेढ़ दशक पहले भी हुआ था प्रयास
भू-माफियाओं की नजर में बेशकीमती तालाब होने के कारण करीब डेढ़ दशक पहले भी इस तालाब को रातोंरात हाइवा से पाटने का प्रयास किया गया था। उस समय जब शहरवासी विरोध में खड़े हो गए और मामला मीडिया में गरमाया तो जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए तालाब पाटने के कार्य को न केवल रूकवाया, बल्कि जनसहयोग से इस निस्तारी तालाब का गहरीकरण और नगरपालिका के जरिए साफ सफाई कराते हए निस्तार के लिए जनता के हवाले किया था। इस बीच नगरपालिका में कई प्रशासक आए और चले गए, लेकिन वर्तमान में पदस्थ नगरपालिका के अफसर का गैर जिम्मेदारीपूर्ण बयान हास्यास्पद है। नगरपालिका सीएमओ भोला सिंह ठाकुर निस्तारी तालाब या जलस्रोतों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन को नजरअंदाज करते हुए तालाब को निजी बताकर साफ सफाई कराने और नाली के पानी को तालाब में जाने से रोकने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं।