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राजनीतिक भाषण और आरोप प्रत्यारोप के बजाय चांपा शहर के सर्वांगीण विकास को भी बनाए प्रमुख मुद्दे

चांपा में चुनाव के वक्त नेता आते है सड़क छाप वादें करते है चुनाव जीतते है और चले जाते हैं। पाँच साल क्या करते हैं यह किसी को कुछ पता ही नही चलता। नगर विकाश को तो छोड़ दीजिए वे अपने नाम को भी आगे नहीं बढ़ा पाते? बस किसी तरह पाच साल गुजारने को ही अपनी सफलता मान लेते हैं। सिर्फ नेताओं को ही क्यों बोले चांपा की जनता का भी वही हाल है, जनता को भी नगर विकास के लिए मुददा क्या होने चाहिए कभी सोचते ही नहीं? बस चुनाव के वक्त सभी पार्टियों से जो मिले अपना काम चला लो और पांच साल भूल जाओं कि नगर में क्या चल रहा है।।

जनता जब तक जागरुक नहीं होगी तब तक नगर विकास भी संभव नहीं है और जब तक नेता जनता से जुड़े मुद्दों से अपने को नहीं जोड़ेगें तब तक उनका नाम भी अमर नहीं होने वाला। तो चलिए इस बार का मुद्दा हम दे रहे है चांपा के लिए जिससे जनता को तो फायदा होगा ही और नेता भी अगर इन मुददों पर गंभीरता से प्रयास करे तो उनका नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित होने से कोई नहीं रोक सकता।
अब जरा गंभीरता से सोचिए कि चांपा इतना पुरातन राजा-महाराजाओं की नगरी होने के बाद भी क्यों अपने अधिकार से आज तक वंचित रहा है? तो इसका जवाब किसी के पास नहीं है। न ही किसी दल के नेताओं के पास और न ही नगर के किसी जनता के पास? चाम्पा नगर इतनी प्राकृतिक, औद्योगिक, ज्ञान, व सास्कृतिक संपदा होने के बाद भी क्यों विकाश की कसौटी पर कस नही पाया? साधारण तौर पर नगर चुनाव में रोड, नाली, पानी व कचरा तक ही सिमट कर रह जाता है जबकि यही नगर विकास की राह पर दौड़े तो ऐसे मुददे अपने आप ही सुलझ जायगी। तो चलिए शुरु करते है कि चांपा को आखिर चाहिए क्या? जिससे चाम्पा में विकास के पँख लग सके।

हसदेव रिवर फ्रंट

पूरे जांजगीर-चांपा जिले की प्यास बुझाने वाली कैमूर पहाड़ी से निकल कर महानदी में समाने वाली अपनी हसदेव नदी आज किसी परिचय की मोहताज नही हैं। इसी नदी के कारण ही आज चांपा का नाम स्वर्ण अक्षरों पर अंकित हैं हसदेव नदी की पानी कभी नहीं सुखती हैं इसी कारण हसदेव नदी पर अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठान लगे है बल्कि यह बोलना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पूरे छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा औद्योगिक प्रतिष्ठान अगर किसी नदी पर लगी होंगी तो वह अपनी हसदेव नदी ही है। लेकिन अफसोस ये सभी औद्योगिक प्रतिष्ठान सिर्फ इस नदी का दोहन ही करती हैं कोई इसे सहेजने का विचार ही नहीं करती हैं। आज हम देखते है कि देश भर में अनेक रिवर फ्रंट बन चुके है जो इन नदियों को सहेजती भी हैं और पर्यटन का उत्कृष्ठ केन्द्र के रुप में भी अपने नगर की शोभा बढ़ाती हैं। और इसके साथ ही साथ यह शासन की आर्थिक आय बढ़ाने का भी एक प्रमुख जरिया बन चुकी है। तो क्यों नही हम भी अपनी हसदेव नदी का भी उसी तरह से उपयोग करें कि अपनी हसदेव नदी के दोनों पाट को हनुमान धारा से लेकर अखराघाट रेल्वे बीज तक एक कारिडोर बनाकर और हसदेव रिवर फ्रंट का नाम देकर नगर विकास की ओर हम अग्रेसित हो। नदी के दोनों पाटों पर फैक्टरी व शहर से निकलने वाली गंदे पानी का भी निस्तारण के लिए अलग व्यवस्था बने और दोनों पाटों को जोड़ने के लिए डोंगाघाट, पाढ़ीघाट, महादेवघाट, कब्रिस्तान व हनुमान धारा पर एक-एक भव्य पैदल पुल का निर्माण हो जिससे लोग परिवार के साथ कुछ पल सुकुन के साथ बिता सके। हसदेव रिवर फ्रंट के दोनों तरफ कुछ प्रदर्शनी व चौपाटी का भी व्यवस्था हो जिससे कि लोगों की शाम आरामदायक हो सके व साथ ही साथ शासन को भी इससे आर्थिक व्यय बढ़ाने में मदद मिल सके।

रामबाधा तालाब चौपाटी
चांपा नगर के हृदय स्थल पर बसा और करीब 99 एकड़ जमीन पर फैला यह विशाल रामबांधा तालाब अपनी प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। कहते है यह तालाब अपने छत्तीसगढ़ के सभी तालाबों में सबसे बड़ा है, तो कई लोग कहते हैं कि भोपाल ताल के बाद दुसरे नंबर का ताल यही रामबांधा ही है। एक तरफ हसदेव नदी तो दुसरी तरफ रामबाधा तालाब ये दोनों ही चांपा के अनमोल धरोहर हैं। पर अफसोस इन धरोहरों को सहेजने पर अब किसी की ध्यान नही है। सब अपनी व्यक्तिगत फायदे के लिए इन घरोहरों को नष्ट करते जा रहे हैं। हमारे देश में एक कानून हैं और सुप्रीम कोर्ट का एक गाईडलाईन भी हैं जिसे तालाबों का संरक्षण और प्रबंधन के तौर पर जाना जाता है। इस गाईडलाईन के तहत तालाबों पर कब्जा करना अवैध व गैर कानूनी भी हैं। गाईडलाईन के अनुसार तालाबों का संरक्षण और प्रबंधन करना राज्य सरकारों व स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है, राज्य सरकारों को तालाबों की पहचान करना, उनका सर्वेक्षण कराना और उनका संरक्षण करके उचित प्रबंध करना उनका मौलिक दायित्व हैं। पर अफसोस राज्य सरकारों व स्थानीय प्रशासन को यह सब करना तो दूर चांपा में खुद नगर प्रशासन के द्वारा ही अब इस 99 एकड के अनमोल धरोहर रामबांधा तालाब पर सौंदर्याकरण के नाम पर कब्जा जमा लिया गया है, और इसी तालाब की जमीन पर नगरपालिका, बस स्टैण्ड सहित तमाम शासकीय कार्यालय खोले जा रहें हैं। तो जब प्रशासन ही सुप्रीम कोर्ट के गाईडलाईन की अवहेलना करनी लग जाए तब जनता बेचारी और कर ही क्या सकती है? यह चांपा का कोई पहली तालाब नही हैं जिस पर प्रशासन व बाहरी लोगों का कब्जा है, चांपा कभी नदी और तालाबों का नगरी भी हुआ करती थी वह नगरी आज ऐसे बहरी व गुंगी प्रशासकों के कारण बेजान व बंजर लगने लगी हैं। हमें तो ऐसा प्रशासन चाहिए जो तमाम शासकीय अभिलेखों पर दर्ज जितनी भी नदी-तालाबों की संपत्ति हैं उसे पुनः उसका संरक्षण कर उसको वास्तविक स्वरुप प्रदान करे व उचित सौदर्याकरण, चौपाटी वगैरह निर्माण कर नगर को पुनः झीलों की नगरी बना सके। जिससे नगर की सुंदरता में चार चांद लग सके

विश्व प्रसिद्ध मंदिर
नगर के अधिकतर लोगों को यह भी नही पता होगा कि चांपा अपने पुरातन समय में कभी मंदिरों के नगरी के रुप में भी पहचान दर्ज है। चलिए हम बताते हैं आपको चांपा के मंदिरों का इतिहास। चांपा के निर्माण के साथ ही साथ सर्वप्रथम यहाँ जो मंदिर बनी वह समलेश्वरी मंदिर है जो आज चांपा के कुल देवी के रुप में विद्यमान हैं। तत्पश्चात् जगन्नाथ मठ मंदिर का उड़िया शैली में निर्माण हुआ। उसके बाद नालंदा विश्वविद्यालय के तर्ज पर यहां संस्कृत पाठशाला का निर्माण हुआ जिसे आज हम शिव मंदिर भखलु अंबा मंदिर के नाम से जानते हैं। इन तीनों मंदिरों की अपनी पुरातन इतिहास हैं। उसके बाद नगर के एक महान संत के द्वारा निर्माण कराया तपसी आश्रम डोंगाघाट का मंदिर हैं। यह मंदिर तपसी महाराज के अनेकों चमत्कार के लिए जग प्रसिद्ध हैं। तपसी आश्रम डोंगाघाट व जगन्नाथ मठ मंदिर यह चांपा के प्रमुख संत निवास बन गये जहां तब से लेकर आज तक जितने भी संत इस नगर में आते है यही उनका ठिकाना बन गया। इसके बाद तो चांपा में मंदिर बनने की एक झड़ी सी लग गयी। राधाकृष्ण मंदिर, बमलेश्वरी मंदिर अष्टभूजी मंदिर हनुमान धारा के हनुमान मंदिर पंचमुखी हनुमान मंदिर, के अलावा हसदेव नदी व रामबाधा तालाब के घाटों पर तो अनगिनत मंदिर बनने लगे जो आज तक निरंतर जारी हैं। वर्तमान में इसी कड़ी में फिर विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण चांपा में शुरु हुआ। जैसे हरिद्वार के तर्ज पर गायत्री शक्ति पीठ, राजस्थान के तर्ज पर खाटु श्याम मंदिर व झुंझुनू के रानी सती मंदिर का निर्माण चांपा में हो चुका है। इसी कड़ी में अब एक और अंर्तराष्ट्रीय संगठन इस्कॉन का भी चांपा में एक भव्य मंदिर बनने की चर्चा जोरों पर है। नगर प्रशासन अगर इस दिशा में थोड़ा गंभीर प्रयास करे तो यह मंदिर भी चांपा में बन सकती हैं जिससे अपना चांपा नगर छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख पर्यटन केन्द्र बन सकता है इस्कॉन एक अंर्तराष्ट्रीय संगठन होने के कारण यहाँ विदेशी भक्तों का भी आना जाना शुरु हो सकता हैं जो प्रशासन व नगर के लिए एक प्रमुख आय का साधन भी बन सकता है।

खेल मैदान
वर्तमान में चांपा नगर की कुल आबादी 62000 होने का अनुमान है। और चांपा नगर की औसत साक्षरता दर इस समय 65 प्रतिशत से अधिक है जो देश की कुल साक्षरता दर 60 प्रतिशत से कही अधिक है। जाहिर सी बात है कि नगर में जब साक्षरता दर देश की कुल साक्षरता दर से अधिक है तो चांपा नगर में अनेक मेधावी छात्र-छात्राए भी होगें जो शिक्षा के साथ-साथ खेलों के प्रति रुचि रखते होगे। पर अफसोस इतने बड़े नगर में एक भी व्यवस्थित खेल मैदान नहीं है। नाम मात्र का एक मैदान है भालेराव मैदान वह भी अब सिकुड़कर खेल मैदान नही बल्कि व्यवसायिक काम्पलेक्स बन कर रह गयी है। खेल सबसे अपरिहार्य उपहारों में से एक है जिसे हम किसी भी उम्र के बच्चों को दे सकते हैं और आप एक सुलभ पड़ोस के खेल मैदान के महत्व को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हालाकि आज के बच्चे ढेर सारी गतिविधियों से अभिभूत है और बाहर खोलने का आनंद लेने के कम अवसर है। इसका एक कारण मैदान की कमी भी है। चाम्पा नगर में अनेक खेल प्रतिभाए अपनी कौशल कला को देश भर में बिखेरने को उत्सुक है पर एक व्यवस्थित खेल मैदान की कमी उनकी कौशल कला पर भारी पड़ रही हैं। यदि उन्हे एक व्यवस्थित खेल मैदान मिल जाए तो वह दिन भी दूर नहीं जब अपने नगर से भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खेलों के लिए चैंपियन मिलना शुरु हो सकता है। मैं पहले भी बता चुका हूँ कि चांपा नगर के अंदर ही अनेक शासकीय भूमि, नदी-तालाब की भूमि राजस्व रिकार्ड में दर्ज हैं जिनका उचित सर्वेक्षण कराया जाए तो नगर के अंदर ही अनेक ऐसी सरकारी भूमि निकलेगी जिसमें एक नहीं बल्कि अनेक खेल मैदान के लिए जगह यहां के खिलाड़ियों को उपलब्ध हो जाएगी और हमारे नगर के खिलाड़ियों के लिए एक जगह पर ही क्रिकेट, फुटबाल, रनिंग टेक, स्केटिंग, बास्केटबाल, बॉलीबाल, बैडमिंटन लॉन टेनिस जैसे अनेक खेलों के खिलाड़ियों को एक शानदार मंच मिल जाएगी।

चांपा लोक महोत्सव
चांपा अतीत से लेकर वर्तमान तक अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। पूरे प्रांत में चांपा को कोसा, कांसा, कंचन की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। कोसा, कांसा, कंचन यहां के प्रमुख उद्योग भी है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। चापा सर्वप्रथम राजा शासन से अंग्रेज शासन फिर वर्तमान के स्वतंत्र भारत में भी अपनी प्रसिद्धि के लिए मशहूर है। इतने ऐतिहासिक धरोहर के होते हुए भी चांपा को पर्यटन के रूप में अभी तक वह स्थान नहीं मिल पाया था जो अब छत्तीसगढ़ राज्य के बनने से उसे हासिल हुआ है। अब जरूरत है तो इस अनुपम पर्यटन स्थल को सहेजने की जिससे पर्यटक इस ऐतिहासिक नगरी चांपा की धार्मिक, पुराणिक एवं ऐतिहासिक स्थलों का भरपूर आनंद उठा सके। और यह तभी संभव है जब यहाँ पर प्रतिवर्ष लोक महोत्सव जैसे आयोजन हो, जिसमें नगर के सभी विधाओं का सम्मान हो, सभी को अपना हुनर प्रदर्शन करने के लिए मंच मिले। लोक महोत्सव भारत के पारंपरिक लोकगीतों, नृत्य, संगीत, और अन्य कलाओं का एक उत्सव है। यह उत्सव अपनी लोक संपदा और नवसृजन को अभिव्यक्त करता है। लोक महोत्सव में विभिन्न विधिाओं के धनी अपनी विरासत का प्रदर्शन करते हैं. इस उत्सव का मकसद ही पारंपरिक कलाओं को लोकप्रिय बनाकर उन्हें संरक्षित करना होता है। कोसा कासा और कंचन भी इस नगर की अमूल्य धरोहर हैं जिसे लोक महोत्सव के माध्यम से हम इसकी ख्याति को और भी चमकदार बना सकते हैं। तो मेरी राय में ऐसे ही मुद्दे को आगे रखकर हर नगरवासी आगे बड़े तो जनप्रतिनिधी भी इस ओर ध्यान नहीं देगें ऐसा हो ही नहीं सकता।

रविन्द्र कुमार सोनी “भारत”
स्वतंत्र पत्रकार. चांपा

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