योग्य पत्रकारों की खामोशी से मिल रहा अयोग्य पत्रकारों को बल!

0 अयोग्य पत्रकारों ने अफसरों और विभिन्न विभागों के नाक में किया दम
0 अयोग्य पत्रकारों की करतूत से गिरने लगा पत्रकारिता का साख, बदल रहा पत्रकारिता के प्रति लोगों का नजरिया
@ हरि अग्रवाल
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली पत्रकारिता व मीडिया के साख पर अयोग्य पत्रकार बट्टा लगा रहे हैं। एक दशक पहले तक अंचल में स्वच्छ पत्रकारिता होती थी। लेकिन बीते एक दशक के दौरान डिजिटल मीडिया के चलन में आने से हर दूसरे या तीसरे घर में पत्रकार पैदा हो गए हैं, जिनकी बिना सिर पैर की पत्रकारिता ने अफसरों सहित विभिन्न विभागों के नाक में दम कर रखा है। विभिन्न अवसरों पर यही अयोग्य पत्रकारों की उपस्थिति ने स्वच्छ पत्रकारिता तहस नहस करने का काम किया है।
जांजगीर चांपा जिले की बात करें तो यहां अयोग्य पत्रकारों की बाढ़ के लिए बहुत हद तक योग्य पत्रकार भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि जैसे ही अयोग्य पत्रकारों की बाढ़ आनी शुरू हुई, वैसे ही योग्य पत्रकार की कलम भी धीमी पड़ गई। और समय के साथ इनकी कलम की रफ्तार इतनी धीमी हो गई कि कछुआ भी तेज जान पड़ता है। इसका सीधा सीधा फायदा अयोग्य पत्रकारों को होने लगा। जिस कदर आज अयोग्य पत्रकारों की हर जगह बाढ़ आई है, उससे स्वच्छ पत्रकारिता का कहीं न कहीं हनन हुआ है।
अब पत्रकारिता जनहित के बजाय स्वहित के लिए किया जा रहा है। पंचायत से लेकर जिला स्तर तक हर जगह पत्रकारिता के प्रति लोगों का नजरिया बदल चुका है। अयोग्य पत्रकारों की करतूतों का खामियाजा योग्य पत्रकारों को भुगतना पड़ रहा है। एक समय था जब लोग पत्रकारों को सम्मान की दृष्टि से देखते थे। उनके आ जाने पर काफी आव भगत किया जाता था, लेकिन अब पत्रकारों की सिर्फ आहट से लोग भागने लगते हैं, कहीं वह पत्रकार उनसे कुछ मांग न लें। अयोग्य पत्रकारों की बढ़ती संख्या आज एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसका निदान किसी के पास नहीं है।
एक वह भी दौर था, जब पत्रकार कोई खबर प्रकाशित कर देता था, तब उसकी काफी चर्चा होती थी। पत्रकारिता पेशे में आने के लिए शैक्षणिक योग्यता के साथ पत्रकारिता में काम करने का अनुभव और साथ में साक्षात्कार से गुजरना पड़ता था, लेकिन डिजिटल मीडिया में खासकर वेबसाइट और यूट्यूब के चलन में आने से कोई भी पत्रकार बन जा रहा है और अपने दोपहिया व चारपहिया वाहन में बड़े शान से संपादक या पत्रकार लिखाकर प्रशासन को धौंस जमाने में जरा भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि अब प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया भी पूरी तरह व्यवसायिक हो गया है। अब पत्रकारों की योग्यता देखने के बजाय कितना बिजनेस देगा उसे प्राथमिता दी जा रही है।
चैटजीपीटी ने लगा दिया चारचांद
डिजिटल मीडिया के नाम पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए चैटजीपीटी मील का पत्थर साबित हो रहा है। एकआई की मदद से कंटेंट पलक झपकते ही मिल जा रहा है। इस वजह से लिखने पढ़ने वाले पत्रकारों से आगे ये पत्रकार निकल जा रहे हैं। दूसरी ओर योग्य पत्रकारों को अपने असाईमेंट और कार्यालय के कामकाज में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें बाहर निकलने की फुर्सत ही नहीं है। जबकि इनके पास एक ही काम है पंचायत से लेकर जिला मुख्यालय तक विभिन्न विभागों और संबंधितों से मुलाकात कर रुपए ऐंठना। जो रुपए देने में आनाकानी करें उसके खिलाफ चैटजीपीटी के माध्यम से समाचार प्रसारित करना। अयोग्य पत्रकारों पर यदि सही मायने में नकेल कसना है तो फिर से एकबार योग्य पत्रकारों को बजरंगबली की तरह जनहित के लिए सक्रिय होकर कलम की ताकत दिखानी होगी। तभी समाज में स्वच्छ पत्रकारिता स्थापित होगी और लोगों का पत्रकार और पत्रकारिता के प्रति नजरिया फिर से बदलेगा।
अफसरों को भा रहा चापलूस लोग आजकल खुद को बड़ा और, औरों को बौना बताने की होड़ मची है। खुद का उल्लू सीधा करने के लिए शब्दों का ऐसा ताना बाना बुन दिया जाता है। भले ही किसी को नीचा दिखाना पड़े, कोई गुरेज नहीं करते। चंद फायदा के लिए किसी को भी नीचा दिखा देने से क्षणिक फायदा हो सकता है लेकिन दूरगामी परिणाम ठीक नहीं है। दूसरी ओर अफसरों को भी चापलूस ही रास आते हैं। सीधी बात करने वाले से अक्सर नोक झोंक हो जाता है।