छत्तीसगढ़ी आलेखः हरेली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख तिहार अउ पहला तिहार आय, गुरहा चीला के परसाद, हमर हरेली तिहार
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संगवारी हो, आज के युवा मन अपन के संस्कृति, तीज तैवहार ल भुलावत हे, जब ले मोबाईल आय हे, युवा मन ऐसे मगन हे जैसे मोबाईल हर ही सब कुछ हे, त संगवारी हो हमर हरेली तिहार के बारे मे आप मन बर ये आलेख ल लिखत हव।
हरेली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख तिहार अउ पहला तिहार आय, ये दिन किसान मन अपन जम्मो किसानी के औजार ल होत बिहनिया नदिया, तालाब, नरवा, इत्यादि म सुघ्घर धो के, घर के आँगन म मिट्टी के छोटे से पीड़हा बना के ओमा सबो औजार ल रखे जाथे, येति हमर महतारी मन घर म गुर के चीला बना के, पूजा के तैयारी करथे, चाउर पिसान के रेहना बना के सब्बो औजार म हाथा देथे, अउ चंदन बंदन लगा के अच्छा से पूजा करके गुर चीला के परसाद चढ़ाथे। फेर पूजा समाप्त होय के बाद घर म रंग रंग के रोटी पीठा बनाये जाथे अउ घर के जम्मो सदस्य एक संघरा बैठ के रोटी पीठा खाय के आनंद लेथे। ओखर बाद संगवारी हो लईका सियान गाँव के गली खोर म मनोरंजन खातिर, गेड़ी दौड़, नारियल जीत, माचिस तोड़ा उल, गिल्ली डंडा, कुस्ती इत्यादि के खेल खेले जाथे। संगवारी हो, अउ इहि बहाना, गाँव के जम्मो पुरुष एक जगह सकला के गाँव के समस्या के सम्बंध म चर्चा करे जाथे, अउ ओखर मिल जुल के निपटारा घलो करथे, अउ अपन अपन किसानी के बारे मे चर्चा करथे, फेर सबो अपन घर डहर लौट जाथे। फेर संगवारी हो अब्बड़ चिंता के बात हे आज हर युवा संगवारी मन आधुनिकता के दौर म गंवा के अपन के तीज तैवहार, अपन संस्कृति ल भुला गय हे, त आवव अब हमर संस्कृति ल जीवित रखे खातिर हरेली तिहार ल एक संघरा मनाबोन।
आलेख
अहिबरन पटेल, कवि गीतकार
ग्राम सोठीं, चांपा छत्तीसगढ़