खरसिया। शासकीय महात्मा गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में 31 जुलाई को महान साहित्यकार व उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई।
प्रतिवर्ष 40 की संख्या में नए छात्र एमए हिन्दी में प्रवेश लेते हैं, जिनकी साहित्यिक प्रतिभा को निखारने, विषय के प्रति ज्ञान को संवर्द्धन करने, वक्तव्य कला को परिमार्जित करने, नई सीख देते हुए सम्पूर्ण व्यक्तित्व को विकसित करने तथा मानवीय सद्गुणों को आचरण में लाने का जिम्मा विभाग के शिक्षक उठाते हैं। छात्रों के बीच विभिन्न कवि-लेखकों की जयंती समय-समय पर मनाते हुए उनके जीवन के आदर्शों को करीब से दिग्दर्शन कराने का कार्य भी शिक्षकोें का उद्योग रहता है। इसी क्रम में सत्र 2023-24 में प्रथम विभागीय गतिविधि के रूप में विभागाध्यक्ष हिन्दी डाॅ.रमेश टण्डन की अध्यक्षता व डाॅ.आकांक्षा मिश्रा अतिथि व्याख्याता के सहयोग से प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को बारिकी से समझा गया। छात्रा छाया डनसेना, रोहितकुमार, छाया राठौर, गीता कुमारी, अनिषा घृतलहरे, हेमलता सिदार, पिंकी साहू, देविका राठिया, हेमलता, रूखमणी राठिया, अम्बिका राठिया, शकुन्तला राठिया, इन्दु, गौरी कुमारी, लता जायसवाल, हंसनी साहू, सुनयना निषाद, श्रद्धा कुमारी, लीलाधर राठिया, पंकजकुमार डनसेना, सुनिता मिरी, भावना केंवट व साक्षी यादव की उपस्थिति में डाॅ.आरके टण्डन ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए प्रेमचन्द के अंतिम उपन्यास गोदान में उल्लेखित होरी-धनिया संवाद, गोबर-झुनिया संवाद, मथुरा-सिलिया संवाद, मेहता-मालती संवाद, ओंकानराथ-रायसाहब संवाद, खन्ना-गोविन्दी संवाद, झिंगुरीसिंह-दातादीन संवाद आदि की सारगर्भित बातों तथा मानवीय मूल्यों का जिक्र किया। एक बार झुनिया गोबर से कहती है, ‘‘मर्द का हरजाईपन औरत को भी उतना ही बुरा लगता है, जितना औरत का मर्द को। अंत में मोह की परिभाषा अंतिम साँस लेते हुए होरी के आँसू ने बता दी, ‘‘जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुख का नाम तो मोह है। छात्र वक्ताओं ने प्रेमचन्द के जीवन-परिचय, रचनाओं आदि पर प्रकाश डाला। छाया राठौर के मंच संचालन व राज्य गीत प्रस्तुतिकरण, रोहित चन्द्रा, छाया डनसेना, डाॅ.आकांक्षा मिश्रा व छाया राठौर के उद्बोधन तथा पिंकी साहू के आभार वक्तव्य के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।