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पुश्तैनी पुरोहिती प्रथा को कायम रखने के उद्देश्य से संस्कृत अध्ययन का विचार महंत रामसुंदर दास के जीवन में लाया क्रांतिकारी परिवर्तन

प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में पहुंचे दूधाधारी मठ के महंत और पूर्व विधायक

जांजगीर-चांपा। किसी चीज को पाने जब मन चाहे और उसके प्रयास में ही जी जान से जुट जाए तो वह अवश्य मिलता है। कुछ इसी तरह का वाक्या महंत राम सुंदरदास के साथ हुआ। संस्कृत शिक्षा की चाह ने उन्हें मालखरौदा क्षेत्र के छोटे से गांव पिहरीद से रायपुर के दूधाधारी मठ पहुंचा दिया। संस्कृत शिक्षा के साथ नर और नारायण की सेवा जो प्रारंभ हुआ, वह निरंतर जारी है।

जांजगीर के कहचरी चौक में जिला प्रेस क्लब के बैनर तले प्रेस मिलिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस बार राज्य गोसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास ने शिरकत की। कार्यक्रम का आरंभ मां सरस्वती की पूजा से हुआ, जिसके बाद पत्रकारों ने शाल श्रीफल और पुष्पगुच्छ से अतिथियों का स्वागत किया। फिर महंत रामसुंदर दास ने प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में पत्रकारों से सहृदयता से चर्चा करते हुए अपने जन्म से लेकर गौ सेवा आयोग के वर्तमान अध्यक्ष के पद तक की यात्रा का मनोरंजक संस्मरण साझा किया। डॉक्टर की उपाधि धारित महंत रामसुंदर दास की स्मरण शक्ति इतनी तेज है कि उन्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव दिन, तिथि, प्रहर तथा घंटे के आंकड़ों में याद हैं। संस्मरण के दौरान संस्कृत महाविद्यालय रायपुर में प्रथम प्रवेश की तारीख भी उनके मानसपटल पर जस की तस अंकित है। राजेश्री ने यह भी बताया कि उनके माता पिता स्वस्थ हैं और उनका सानिध्य उन्हें प्रेरणा दे रहा है। माता-पिता की चौथी संतान के रुप जन्म के पश्चात अध्ययन के लिए मैट्रिक के बाद पिता की इच्छा के अनुरुप पुश्तैनी पुरोहिती प्रथा को कायम रखने के उद्देश्य से संस्कृत अध्ययन का विचार उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तिन का कारक बना। ये संस्कृत अध्ययन की ललक ही थी, जिससे मालखरौदा के पिछड़े क्षेत्र के अंतिम छोर में बसे गांव पिहरीद का बालक रायपुर जा पहुंचा। इसके बाद संस्कृत संस्कृति और आध्यात्म के मार्ग पर ऐसे अग्रसर हुए कि राज्य के प्रमुख धार्मिक स्थलों के अधिष्ठाता बन चुके हैं। दूधाधारी मठ के मुख्य महंत के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण और राजिम जैसे महत्वपूर्ण देवालय राजेश्री के कर्तव्य स्थल हैं।

छ.ग. संस्कृत बोर्ड की त्वरित मिली मंजूरी
पत्रकारों से चर्चा में मठप्रधान बनने के दौरान हुई मार्मिक घटनाओं के उल्लेख से ही उनके नयनकोर छलकते दिखे। गुरुप्रयाण के क्षणों का रुधें गले से बयान अभिसिक्त करने वाला रहा। उन्होने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद संस्कृत के विकास के लिए संस्कृत बोर्ड बनने के वाक्ये का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कैसे त्वरित निर्णय लेकर बोर्ड की मांग को स्वीकृति दी और प्रथम अध्यक्ष के रुप में महंत रामसुंदर दास को मनोनीत करते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। यही सक्रिय राजनीति में प्रवेश की अन्य घटनाओं की पहली कड़ी बनी। सन् 2003 में पामगढ़ क्षेत्र से विधायक बने, जो पुनः 2008 में नए जैजेपुर क्षेत्र के प्रथम विधायक निर्वाचित होने तक जारी रहा। बीच में आया अंतराल जन सेवा, गौ सेवा और संस्कृति सेवा के कार्य में बाधक नहीं बन पाया और नर नारायण सेवा में समर्पित महंत रामसुंदर दास की यात्रा जारी है।