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नाग पंचमी विशेषः नाग पंचमी के साथ मिलेगा शिवोपासना का सौभाग्य, हिंदू त्योहार पर नागों की पारंपरिक पूजा का विधान

अरविंद तिवारी@जांजगीर चांपा। नाग पंचमी का त्योहार हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है, जो इस साल आज सोमवार को है। नाग पंचमी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। भारत, नेपाल और हिंदू आबादी वाले अन्य दक्षिण एशियाई देशों में लोग इस हिंदू त्योहार पर नागों की पारंपरिक पूजा करते हैं। आज के दिन नागों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। वैदिक पंचांग के अनुसार नागपंचमी आज श्रावण सोमवार व्रत के दिन रखा जायेगा। ऐसे में भक्तों को इस दिन भगवान शिव की उपासना का भी सौभाग्य प्राप्त होगा।

आज चित्रा नक्षत्र , शुभ और शुक्ल युग का निर्माण हो रहा है। जिन्हें पूजा-पाठ के लिये अत्यंत फलदाई माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गये हैं। नाग पंचमी के दिन व्रत रखने का भी विधान है। नाग पंचमी का व्रत करने और कथा पढ़ने से व्यक्ति को सर्प दोष से मुक्ति मिलती है , भय दूर होता है और परिवार की रक्षा होती है। इस व्रत के देव आठ नाग माने गये हैं। इस दिन अनन्त , वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है। यदि किसी की कुंडली में कालसर्प दोष हो तो नागपंचमी की पूजा और व्रत करने से इस दोष से आराम मिलता है। उज्जैन का नागचंद्रेश्ववर मंदिर साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलता है। इस दिन यहां पूजा करने से कालसर्प दोष से छुटकारा मिलता है। यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है, तो नाग पंचमी के दिन नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुये पानी में प्रवाहित करें। इस दिन ब्राहमण को नाग-नागिन के चांदी के जोड़े दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है और सांप काटने का दोष भी दूर होता है। इस दिन रूद्राभिषेक करने से भी कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, चीनी चढ़ायें और इस बात का ध्यान रखें कि जल पीतल के लोटे से ही अर्पित करें। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी पर्व के दिन नाग देवता की पूजा करने से और सांपों को दूध पिलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। नाग देवता भगवान शिव के प्रिय गणों में से एक हैं। ऐसे में इस दिन भगवान शिव और नाग देवता की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भारत कृषि प्रधान देश है और लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। सांप खेतों का रक्षण करता है, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांँप हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। भारत के प्राचीन महाकाव्यों में से एक महाभारत में, राजा जनमेजय नागों की पूरी जाति को नष्ट करने के लिये एक यज्ञ करते हैं। यह अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिये था, जो तक्षक सांप के घातक काटने का शिकार हो गये थे। हालांकि प्रसिद्ध ऋषि आस्तिक जनमजेय को यज्ञ करने से रोकने और नागों के बलिदान को बचाने की खोज में निकल पड़े। जिस दिन यह बलि रोकी गई वह शुक्ल पक्ष पंचमी थी, जिसे अब पूरे भारत में नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

विभिन्न हिन्दू ग्रंथों में नागों की कई कहानियां
महाभारत, नारद पुराण, स्कंद पुराण और रामायण जैसे ग्रंथों में सांपों से जुड़ी कई कहानियां हैं। एक और कहानी भगवान कृष्ण और नाग कालिया से जुड़ी है, जहां कृष्ण यमुना नदी पर कालिया से लड़ते हैं और अंत में मनुष्यों को दोबारा परेशान ना करने के वादे के साथ कालिया को माफ कर देते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने से भक्त को सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। नाग पंचमी के दिन वासुकी नाग, तक्षक नाग, शेषनाग आदि की पूजा करने का विधान है। इस दिन लोग अपने घर के द्वार एवं दीवार पर नागों की आकृति बनाकर नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चाँवल आदि से पूजन आरती कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं। यदि सपेरा आये तो उसके नाग की पूजा करने का भी प्रचलन है फिर सपेरे को दक्षिणा देकर विदा किया जाता है, अंत में नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे नाग देवता की कृपा बनी रहती है और नाग देवता घर की सुरक्षा करते हैं।

भगवान शिव और विष्णु का प्रमुख गण नाग
हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। परन्तु नाग पंचमी पर नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंँच जाती है। प्राणीमात्र के साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वे उपयोगी हैं। नागदेवता को भगवान शिव और विष्णु का सर्वाधिक प्रिय बताया गया है। नागदेवता देवों के देव महादेव भगवान शिव के गले की शोभा बढ़ाते हैं तो वहीं वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु की सैय्या भी हैं। भगवान विष्णु नागदेवता की कुंडली से बनी सैय्या पर ही विश्राम करते हैं। इन सभी के कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है। इसके साथ ही सबसे क्रूर ग्रहों में माने जाने वाले राहु को भी नाग का रूप माना जाता है। दुर्जन भी यदि भगवद् कार्य में जुड़ जाये तो प्रभु भी उसको स्वीकार करते हैं, इस बात का समर्थन शिव ने साँप को अपने गले में रखकर और विष्णु ने शेष-शयन करके किया है। इसके कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है।

पाताल लोक का स्वामी नागदेवता
आज के दिन अनेकों गाँवों व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में योगों के साथ साथ दोषों को भी देखा जाता है। कुंडली के दोषों में कालसर्प दोष एक बहुत ही महत्वपूर्ण दोष होता है जो कई प्रकार का होता है। जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापार, नौकरी क्षेत्र में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिये सर्वोत्तम माना गया है। इस दोष से मुक्ति के लिये ज्योतिषाचार्य नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के साथ साथ दान दक्षिणा का महत्व बताते हैं। पुराणों के अनुसार नागों को पाताल लोक का स्वामी माना गया है। सांपो को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। सांप चूहों आदि से किसान के खेतों की रक्षा करते हैं। साथ ही नाग भूमि में बांबी बना कर रहते हैं इसलिये नागपंचमी के दिन भूलकर भी भूमि की खुदाई या खेतों में हल नही चलानी चाहिये। आज के दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिये। बांँबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिये। नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिये क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।