छत्तीसगढ़जांजगीर-चांपा

नवरात्रि के लिए सजा माता का दरबार, मातामय की भक्ति से सराबोर होगा अंचल कल से, मंदिरों के अलावा पंडालों में भी होगी माता की पूजा


जांजगीर-चांपा। रविवार को नवरात्रि आगाज के साथ ही माता के दरबार में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगेगी। श्रृद्धालु घरों में भी शुभ मुहूर्त पर कलश स्थापित कर अनुष्ठान करेंगे। मंदिरों में नवरात्रि के लिए तैयारी पूरी कर ली गई है। इसके साथ ही गांवों से लेकर शहरों तक पंडाल बनाकर मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाएगी।

जिला मुख्यालय जांजगीर के शारदा मंदिर, पुरानी बस्ती स्थित देवीदाई मंदिर, केरा रोड स्थित दुर्गा मंदिर, बीटीआई चौक स्थित चंडी मंदिर, ग्राम हरदी की महामाया, पहरिया की अन्नधरी देवी, घाठाद्वारी की घाठादेई, केरा की चंडी देवी, शिवरीनारायण की अन्नपूर्णा, चांपा की समलेश्वरी, बाराद्वार की काली मां, खोखरा की मनकादाई, अड़भार की अष्ठभुजी, चंद्रपुर की चंद्रहासिनी, सक्ती की महामाया सहित अन्य सभी देवी मंदिरों में नवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी। रविवार को शुभ मुहूर्त देखकर पंडित घट स्थापना के साथ ज्योति कलश प्रज्जवलित करेंगे। इसके बाद सांचे दरबार की जय जैसे जयघोषों से समूचा अंचल मातामय हो जाएगा। इसी क्रम में शहर से लेकर गांवों तक कई स्थानों में देवी भागवत कथा का आयोजन प्रारम्भ होगा। माता को प्रसन्न करने के लिए कई श्रद्धालु व्रत भी करेंगे। इसी तरह जिला मुख्यालय जांजगीर, चांपा, अकलतरा, सक्ती सहित अंचल में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापना के लिए कई दिनों से पंडाल बनाया जा रहा है। शनिवार की देर रात तक पंडाल को संवारने का काम चलेगा। पंडाल के आसपास को रंगीन लाइट से सजाई गई है, जिसकी सुंदरता रात में देखते ही बन रही है। चांपा के कोरबा रोड और नैला स्टेशन के पास आकर्षक पंडाल बनाए गए हैं, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ेगी

पहले दिन शैलपुत्री की होगी पूजा
पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होगी। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनके पूजन से मूलाधर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां प्राप्त होती हैं। नवरात्रि में पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा होगी। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा की जाएगी।