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नवरात्रि विशेषः 51 शक्तिपीठों में से एक चंद्रपुर में विराजी मां चंद्रहासिनी, दो अगरबत्ती व फूल से ही प्रसन्न हो जाती हैं माता, पूर्ण करतीं है सभी की मनोकामनाएं


जांजगीर-चांपा। सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं। महानदी व माण्ड नदी के बीच बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम जगत में फैल रही है, लेकिन इसका स्वरूप चंद्रमा से भी सुंदर है। माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती व फूल से ही पूर्ण कर देती है।

चंद्रपुर रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां माता चंद्रसेनी का वास है। चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की फिजां बहुत ही मनोरम है। एक ओर जहां महानदी अपने स्वच्छ जल से माता चंद्रसेनी का पांव पखारती है, वहीं दूसरी ओर माण्ड नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था, लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ है, तब से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मंदिर का मुख्यद्वार इतना आकर्षक और भव्य है कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु उसकी तारीफ किए बगैर नहीं रूकते। इसके बाद मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा, शेष शैय्या तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां जीवंत लगती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की विस्तार से जानकारी भी मिलती है। दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है। ऐसा नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है। चंद्रहासिनी मंदिर के आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का स्थित मंदिर है।