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एसडीएम के बदलते ही किसी को फायदा पहुंचाने दोबारा खेला वहीं खेल, जिसे तत्कालीन एसडीएम ने रोक लगा दी थी, जानिए क्या है पूरा मामला

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जांजगीर चांपा। तत्कालीन एसडीएम और सीएमओ के यहां से हटते ही व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने फिर से जिम्मेदारों ने दोबारा वहीं खेल खेला, जिसे दो साल पहले तत्कालीन एसडीएम ने रोक दिया था। अभी फिर से अपने अधिकार से बाहर जाकर जहां नगरपालिका से अनापत्ति जारी हुआ तो वहीं इसी अनापत्ति के सहारे कलेक्टर ने भी अनापत्ति दे दिया और फिर राज्य सरकार ने इस पर मुहर लगा दी। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है जल मद में दर्ज भूमि पर निर्माण नहीं किया जा सकता। मामला हाईकोर्ट पहुंचने के बाद जनहित में फैसला आ सकेगा।

दस्तावेजों के मुताबिक, पूरा मामला चांपा का है, जहां दो साल पहले चांपा के तत्कालीन एसडीएम ने जिस शासकीय नजूल भूमि खसरा नंबर 169 पर स्थित नाले के अस्तित्व को समाप्त करने बनाई जा रही कच्ची सड़क को तत्काल बंद कराते हुए पूर्व की अवस्था में लाने का आदेश जारी किया था, उसी नाले में फिर से चमचमाती सड़क बनकर तैयार है। खास बात यह है कि शासकीय नजूल भूमि खसरा नंबर 169 रकबा 0.56 एकड़ राजस्व अभिलेख में पानी के नीचे मद में दर्ज है। मिसल बंदोबस्त में भी पानी के नीचे मद में दर्ज है। इसके अलावा खसरा नंबर 169 रामबांधा तालाब के अंतिम सिरे से ग्राम कुरदा तक नाली बनी है, जो निस्तार पत्रक में नाला दर्ज है।

इस पर पहले भी नगरपालिका के अनापत्ति जारी करने पर तत्कालीन एसडीएम ने अपने आदेश पत्र क्रमांक 12/ब-121/शिका.शा/2021 9 मार्च 2021 के जरिए कहा था कि राजस्व निरीक्षक नजूल चांपा तथा हल्का पटवारी द्वारा प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन एवं राजस्व अभिलेखों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि खसरा नंबर 169 रकबा 0.56 एकड़ शासकीय भूमि है, जो मिसल बंदोबस्त 1929-30 में पनी के नीचे मद में दर्ज है तथा खसरा पांचशाला में भूजल मद में दर्ज है। जिस पर बिना किसी समक्ष अनुमति के निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। तत्कालीन एसडीएम ने अपने आदेश में कहा था नगरपालिका सीएमओ के जवाब से प्रतीत होता है कि उनके द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते समय भूमि के मद तथा उक्त भूमि पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए जाने के लिए अपनी अधिकारिक सीमा का परीक्षण नहीं किया गया तथा इस तथ्य की भी जांच नहीं की गई कि उक्त भूमि नगरपालिका के प्रबंधन में है अथवा नहीं। छग भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 57 की उप धारा (1) समस्त भूमियां राज्य सरकार की है। उप धारा (2) जहां राज्य सरकार तथा किसी व्यक्ति के बीच उप धारा (1) के अधीन किसी अधिकार के संबंध में कोई विवाद उद्भूत हो, वहां ऐसा विवाद उप खंड अधिकारी द्वारा विनिश्चत किया जाएगा। तत्कालीन एसडीएम ने नगरपालिका के तत्कालीन सीएमओ द्वारा जारी अनापत्ति को अधिकारिता विहिन के चलते प्रारंभ से शून्य बताया था। मामला ठंडा होने और एसडीएम के बदलते ही दोबारा वहीं खेला करते हुए कलेक्टर और शासन को गुमराह कर इस बार अपने मकसद में कामयाबी पा ली गई है। बता दें कि नजूल भूमि के बगल में एक निजी प्लाट है, जिस पर प्लाटिंग की जा रही है। इस सड़क के चलते 75 फीसदी प्लाट की बिक्री ठप पड़ गई थी। अब फिर से ये कारनामा कर वहां फोरलेन सड़क बना दी गई है। बहरहाल, मामला हाईकोर्ट पहुंचते ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।