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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर विशेष, गर्व से कहो हम स्वयंसेवक है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विशाल जनजागरण् अभियान

साल 2025 विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना कें 100 साल परे करने जा रहीं हैं। कितना भव्य होगा वह दिन, हम तो आज से ही उस दिन की कल्पना करके गर्व के साथ रोमांचित हुए जा रहे हैं। इन सौ वर्षों में शायद ही ऐसा कोई वक्त रहा हो जब संघ, उसकी विचारधारा या उसकी गतिविधियां सुर्खियों में न रही हो? लोग कहते हैं कि साल 2014 केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से संघ का राजनीतिक प्रभाव कई गुना बढा हैं और संघ अब तक की अपनी सबसे मजबूत स्थिति में नजर आने लगा हैं। परन्तु मेरे नजर संघ कभी भी राजनीति के भरोसे नही रही हैं क्योंकि जब संघ की स्थापना हुई तब तो देश गुलाम था, आजादी के बाद कांग्रेस की शासन रही, तो यहां पर राजनीतिक ताकत का तो मतलब ही नहीं हैं। संघ तो सिर्फ अपने हौसलों, अपने संस्कार, अपने अनशासन और अपनी देशभक्ती के बलबुते ही अपनी स्थापना से लेकर आज अपने 100 साल के सफर में अनवरत बिना डिगे, बिना थके बस चरैवेति-चरैवेति का मंत्र लिए आगे बढ़कर इस ऐतिहासिक मुकाम को प्राप्त की हैं।

संघ अपने स्वयंसेवकों की महान तप के कारण ही आज अपने शताब्दी वर्ष के स्वागत द्वार पर खड़ी हैं। क्या कोई सपने में भी सोच सकता हैं कि कोई संगठन अपनी स्थापना से लेकर आज तक निरंतर 100 साल तक बिना टुट-फूट के स्वयंसेवकों में बिना मतभेद के 100 वर्षों तक चल सकता हैं। इसी दौरान स्वयंसेवकों की राह रोकने के लिए तीन-तीन बार राष्ट्र विरोधियों द्वारा संघ पर प्रतिबंध भी लगाया गया था, परन्तु हर प्रतिबंध के बाद संघ उतने ही मजबूती से निखरता चला गया। तमाम विपरित परिरिथितियों को पार करते हुए व वर्तमान समय को अपने अनुकूल बनाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक गर्व के साथ सीना ताने अपना शताब्दी वर्ष मनाने को तैयार हैं।

कैसे पड़ी संघ की नीव?

देश की स्वतंत्रता आन्दोलन के लिये हिन्दुस्तान को क्रांतिकारियों की कमी कमी भी महसूस नही हुई। हर क्रांतिकारी की अपनी अलग-अलग कहानी एवं अलग-अलग पहचान है। किसी को अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिये फौज बनाने की चिंता थी तो किसी को बड़ा आन्दोलन खड़ा करने की, तो किसी को आजादी कैसे मिले सदैव इसकी ही चिंता लगी रहती थी। इन्हीं क्रांतिकारियों में एक क्रांतिकारी ऐसा भी था जिसको आजादी की नहीं (क्योंकि उन्हें तो पूर्ण विश्वास था कि आजादी तो हमें मिलकर ही रहेगी) बल्कि आजादी के बाद राष्ट्र का कैसा स्वरूप बने जिससे यह राष्ट्र पुनः किसी के हाथों गुलाम न हो बस यही चिंता अत्यधिक सताती रहती थी। वे चाहते थे कि फिर कभी अपनी भारत माता की मस्तक किसी आतातायी के सामने न झुके और न न ही भारत माता के सच्चे सपूतों को कभी विदेशी दासता की गुलामी झेलनी पड़़े। इसी कारण उन्होंने भारत माता की रक्षा हेतु सन् 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी अनुशासित संगठन की स्थापना की! वह क्रांतिकारी है डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार पंत!

डॉ हेडगेवार जिस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की उस समय हिन्दू संगठन के नाम से और भी अनेक संगठन इस देश में कार्य कर रही थी, परन्त् उनमें से अधिकांश बिना किसी लक्ष्य के ही आगे बढ रही थीं, और कुछ तो अपनी सीमित भूमिकाएं निभाकर अतीत के गोद में विलिन हो चुकी थी। जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना एक लक्ष्य, एक राष्ट्रीय विचार को लेकर आगे बढ़ी।

संघ की नजर में हिन्दू कौन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राष्ट्रविरोधी तत्व हमेशा साम्प्रदायिक नजरों से देखते हैं, और कहते है कि यह सिर्फ हिन्दूओं का संगठन हैं। हिन्दू की परिभाषा वे खुद नही जानतें और देश को बरगलाने में ही लगे रहते हैं। संघ के अनुसार जो इस भारत भूमि में रहता हैं वह हिन्दू हैं जिसके पूर्वज इस भारत भूमि पर पैदा हुआ और खाक हुआ वह हिन्दू है, जो इस पवित्र भारत भूमि को भूमि मात्र नही अपितु मातृभूमि मानता हैं वह हिन्दू हैं, जो इस महान राष्ट्र की असंख्य देवी-देवता, भारतीय संस्कृति को मानता है वह हिन्दू हैं। संघ हिन्दुत्व को कोई धर्म विशेष नहीं मानता, संघ हिन्दुत्व को इस राष्ट्र की जीवन पद्धति- दिनचर्या मानता हैं। देश में भले ही अनेक पंथ, संप्रदाय और मजहब को मानने वाले लोग हों परन्तु संघ हिन्दुस्थान की समस्त जनता को हिन्दू मानता हैं और उनकों इस राष्ट्र की सुरक्षा हेतु संगठित देखना चाहता है जिससे कि देश पूर्ण रुप से हिन्दू राष्ट्र बन सके।

संघ स्थापना का उददेश्य

संघ के स्थापना का विचार डॉ. हेडगेवार को आजादी की लड़ाई के दौरान ही आया था। महात्मा गांधी और डॉ हेडगेवार दोनों ने ही आजादी की लडाई साथ-साथ लड़े है। डॉ हेडगेवार के मन में इस राष्ट्र के प्रति एक गहरा सोच था. इसलिये वे जब भी महात्मा गांधी से मिलते तो उनका एक ही सवाल होता था कि गाँधी जी आजादी मिलने के बाद इस देश का क्या होगा? और गांधी जी का हमेशा एक ही जवाब होता था कि “पहले आजादी तो मिल जाए आगे की बाद में विचार करेंगे।”

गांधी जी से बार-बार यही जवाब पाने से डॉ. हेडगेवार ने सोचा कि अब हमें ही कुछ अलग करना पडेगा, क्योंकि आजादी तो हमें निश्चित ही मिलेगी, परन्त् इससे इस देश का उद्धार नही हो सकता। इसलिये हमें पहले से ही कुछ और सोचना चाहिए? उनके मन में हमेशा एक ही बात ध्यान आता था कि जब-जब इस देश में हिन्दु कमजोर पड़ा है तब-तब इस देश पर विपत्ती आई है इसलिए सर्वप्रथम कार्य हमें हिन्दुओं को ही संगठित करना चाहिए। हिन्दू संगठन संबंध में वे जब भी किसी से बात करते तो कितनों लोग डर जाते थे तो कितने लोग हंसी में उनकी बात को उड़ा देते थे, और उल्टे उन्हें ही जवाब देते थे कि हिन्दू भी कभी संगठित हो सकते हैं हिन्दुओं को एकत्र करना यानें जिंदा मैंढक को तौलने के समान है? उस समय का हिन्दू अपने आप को हिन्दू कहने से भी डरता था। लेकिन डॉ हेडगेवार ने प्रण किया कि और अब मैं हिन्दू संस्कृति पर ब्रजपात होते नही देख
सकता और अपने कुछ दोस्तों के साथ सन् 1925 में नागपुर के मोहितेवाड़ा नामक स्थान पर संघ का पहला शाखा लगाकर संघ की स्थापना किया और वहीं पर उन्होंने घोषणा किया कि मैं इस विशाल हिन्दु समाज को संगठित करने के लिये अपने जीवन के क्षण-क्षण और अपने रक्त के कण-कण को भी सुखाकर पुरा करूंगा। डॉ हेडगेवार ने संघ की स्थापना इस ध्येय के साथ शुरू किया कि हिन्दु से ही हिन्दुस्तान है इसलिये हिन्दूओं का संगठन परम आवश्यक है इसके साथ ही हिन्दुओं की शारीरिक, मानसिक तथा बौध्दिक उन्नति करना, हिन्दुओं में भ्रातुप्रेम और सेवा भाव उत्पन्न करना, प्राचीन संस्कृती का विकास करना व हिन्दुस्थान के लोगों मे राष्ट्रभक्ति का भाव जागृत होना चाहिए। इन उददेश्यों के साथ शुरू किये गये संघ की संगठन ने लोगों मे एक नई चेतना जागृत कर गई और अधिक से अधिक लोग संघ की शाखा में आने लगें। धीरे-धीरे संघ का कार्य बहुत बढ़ गया, हर क्षेत्र से लोग संघ मे जुड़ते गये और यह संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन का रूप धारण कर लिया।

क्या है संघ की शाखा?
तत्पश्चात संघ की शाखा का महत्व दर्शाया गया कि आखिर संघ की शाखा क्या है? संघ की शाखा खेल खेलने अथवा व्यायाम करने का मात्र स्थान नही है, अपितु सज्जनों की सुरक्षा का बिन बोले अभिवचन है, तरूणों को अनष्टि व्यसनों से मुक्त रखने का संस्कार-पीठ है, समाज पर अकस्मात आने वाली विपप्तिओ अथवा संकटो में त्वरित निरपक्ष सहायता मिलने का आशा केन्द्र हैं, महिलाओं पर निर्भयता एवं सभ्य आचरण का आश्वासन है दुष्ट तथा राष्ट्रद्रोही शक्तियों पर अपनी धाक स्थापित करने वाली शक्ति है और सबसे प्रमुख बात यह है कि समाज जीवन के विमिन्न क्षेत्रों को सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने हेतु प्रशिक्षण देने वाला विद्यापीठ है।

कैसा होना चाहिए संघ के स्वयंसेवकों को?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक समाज सेवी संगठन है, संघ का हर कार्य सेवा कार्य हैं इसलिए इसके हर स्वयंसेवक को अनुशासित होना चाहियें। अन्य राजनीतिक व सामाजिक संगठन की अनुशासनहीनता को ध्यान में रखते हुए संघ के स्वयंसेवकों को अनुशासित करने के लिए एक विचार तंत्र बनाई गई और कहा गया कि संघ के स्वयंसेवकों में निम्न गुण होने ही चाहिए- परिस्थिति निरपे्क्ष ध्येय निष्ठा, आत्मनिरीक्षण के साथ-साथ आत्म विकास करने की प्रवृति, दायित्व लेने की सिद्धता, अहंकार शून्यता. अनुशासन, सफलता के प्रति आत्मविश्वास, विशुद्ध चरित्र, नि:स्वार्थ वित्ती, समाज के प्रति सेवा भावना, आत्मीयता और राष्ट्रभक्ति परस्पर सहकार्य का स्वभाव, सादगीयुक्त रहन-सहन व व्यवहार सजकता होना ही चाहिए।

विदेशों में संघ

संघ के इन्हीं मार्गदर्शन पर चलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व की सबसे बड़ी व अनुशासित संगठन बन गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम आज विश्व में कौन नही जानता? आज सिर्फ हिन्द्स्तान में ही संघ की नियमित एवं विभिन्न रूपों में लगनी वाली शाखाओं की संख्या लगभग सत्तर हजार (७० हजार) से अधिक है। संघ की शाखा हिन्दुस्तान के अलावा आज संपूर्ण विश्व में लगती हैं जैसे नेपाल, आस्ट्रेलिया, म्यांमार(बर्मा). हांगकांग, थाईलैण्ड, इग्लैण्ड, हालैण्ड, कनाडा, इन्डोनेशिया, अमेरिका, त्रिनिदाद, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया इत्यादि और भी अनेक करीब 200 प्रमुख देशों में शाखा लगती है। विदेशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को “हिन्दु स्वयंसेवक संघ” के नाम से जाना जाता हैं

संघ के अनुषांगिक संगठन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन अर्थात जिसको लोग “संघ परिवार” का नाम दे देते है। तोऐसे संघ से जुड़े देश-विदेश में लगभग 100 से अधिक अन्य संगठन भी इस समय संपूर्ण विश्व में कार्यरत है, जैसे- भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दु परिषद, बजरंग दल. अखिल भारतीय विद्यार्थीं परिषद, विद्याभारती, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय बनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, ग्राहक पंचायत, सेवा भारती, दुर्गा वाहिनी, स्वदेशी जागरण मंच, हिन्दु जागरण मंच, इत्यादि और भी अनेक
राजनितिक अथवा सामाजिक संगठन है।

समाज सेवा

आज संघ की समाज सेवा किसी से छिपी नही हैं। देश के उत्तर, दक्षिण, पूरब व पश्चिम के किसी भी हिस्से पर कुछ भी आपदा आती है तो आपको सबसे पहले मदद करने के लिए संघ के स्वयंसेवक ही आगे खड़े मिलेंगे। वर्तमान के अहमदाबाद में विमान दुर्घटना हो या केदारनाथ का जलजला हो चांपा का ट्रेन दुर्घटना हो या बिहार का बाढ़ हर जगह आपदा में संघ के स्वयंसेवक ही आपको सेवा करते दिखाई पडेंगे। संघ के इन्हीं सभी सेवाकार्यों को देखते हुए संघ के विरोधी संघ को सिर्फ हिन्दुओं का संगठन बताकर बदनाम करने की कोशिश करते है। और अनेक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर साम्प्रदायिक संगठन का नाम देकर प्रतिबंध भी लगाया गया है। तब हिन्दु बहुत कमजोर थे लेकिन आज की परिस्थिति पहले से काफी भिन्न है, आज संघ की शक्ति मिलने के कारण हर हिन्दू अपने आप को गर्व से हिन्दू कहने लगा हैं। संघ के कार्य, लगन, पीड़़ितो पर सेवा, राष्ट्रभक्ति इतना मजबुत हो गया है कि मुस्लिम शासित देशों ने भी संघ के इन सेवा कार्यों की सराहना करने लगे है और ये मुस्लिम शासित देश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को साम्प्रदायिक संगठन नही बल्कि एक राष्ट्रभक्त संगठन मानते हैं। सउदी अरब के अलारियाद नामक अंग्रेजी दैनिक ने 1996 में हरियाणा के चरखी दादरी के आकाश पर हुई विमान दुर्घटना पर एवं अन्य प्रसंगो पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बचाव कार्यों को देख संघ की भूरि-भूरि सराहना की है क्योंकि उस हादसे के अधिकांश यात्री मुस्लिम थे।

सार बात

राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ की भूमिका का मैनें यह जो विस्तृत विवेचन किया हैं इसमें कुछ भी अपनी तरफ से नई बात नहीं लिखी हैं। संघ के पूर्व एवं वर्तमान संघचालकों ने भी यही भमिका बार-बार, अनेक बार, हर समय प्रतिपादित करते रहते हैं जो मैंने लिखी हैं। मुझे आशा हैं कि निरंतर संघ विरोधी दुष्प्रचार के कारण जिन लोगों के मन में कोई भ्रम बैठा होगा, तो आशा हैं कि वे मेरे इस विवेचन से अवश्य दूर हो जाएंगें और संघ की विशुद्ध राष्ट्रीय भमिका को वे अच्छी तरह समझ सकेगें। हां जिन लोगों ने अपने स्वार्थवश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सिर्फ विरोध करने का ही बीड़ा उठाया हो, उनका समाधान हम तो क्या स्वयं ब्रम्हा जी भी नही कर सकते? क्योंकि जो सोया हैं उसे तो जगाया जा सकता हैं किन्तु जो नींद का ढोंग कर रहा हो भला उसे कौन जगा सकता हैं? हम जनमानस से एक बार फिर अपील करते हैं कि अगर आप संघ को पूरी-पूरा जानना चाहते हैं तो मिडिया सोशल मिडिया, नेताओं अथवा राष्ट्रविरोधियों की बयानबाजी से दूर स्वतंत्र मन से एक बार आपको संघ की शाखा में आना ही होगा, तभी संघ वास्तविक में क्या हैं इसको समझ पाएंगें। संघ की शाखा में बगैर आए आप संघ को सिर्फ उतना ही जान पाएंगे जितना की एक अंधा आदमी हाथी को छुकर सिर्फ अनुमान लगा सकता हैं कि हाथी होता कैसा हैं। पर वास्तविकता तो हमेशा अनुमान से एकदम विपरित ही होता हैं। आइयें हम सब मिलकर संघ की शाखा में आकर जानें कि संघ वास्तविक में है क्या चीज? देश के किसी भी हिस्से के कोई भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा हो, आइयें आपका हृदय से स्वागत हैं।

संकलनकर्ता
रविन्द्र कुमार सोनी “‘भारत”
स्वतंत्र पत्रकार
सदर बाजार , चांपा-495671( छग) मो:7869751400

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