छत्तीसगढ़जांजगीर-चांपा

डोंगाघाट मंदिर के पुजारी को गलत तरीके से नियुक्त किया था सर्वराकार, पूर्व सर्वराकार महंत शंकरदास का सामने आया वसीयत, पुजारी के सर्वराकार बनते ही लोकन्यास की चल अचल संपत्ति पर शुरू हुई टेढ़ी नजर

जांजगीर-चांपा। डोंगाघाट लोक न्यास पब्लिक ट्रस्ट पंजीयन के लिए आमंत्रित दावा आपत्ति के दौरान पूर्व सर्वराकार स्व महंत शंकरदास गुरू तपसीबाबा का वह वसीयत सामने आया है, जिससे सनसनी फैल गई है। 29 जून 1996 के इस वसीयत में पूर्व सर्वराकार स्व. महंत नरोत्तम दास को सर्वराकार रहने के बजाय आजीवन हनुमान मंदिर में आजीवन पूजा पाठ करना लिखा गया है। वहीं उनके बाद महंत नृत्य गोपाल दास गुरू मनोहर दास को सर्वराकार नियुक्त किया था। इस वसीयत में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है यदि डोंगाघाट लोक न्यास की चल अचल संपत्ति की खरीदी बिक्री या अपने लाभ के लिए किसी को लीज पर देते हैं तो उसे वसीयत का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसी स्थिति में डोंगाघाट लोक न्यास का संचालन शहर के गणमान्य नागरिक करेंगे।

इस वसीयत के सामने आते ही इलाके में सनसनी फैल गई तो वहीं लोक न्यास की संपत्ति का जिस तरह से बंदरबाट हुआ है, क्या उसे वसीयत का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। वसीयत के सामने आते ही कई सुलगते सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है। वसीयत के मुताबिक, पूर्व सर्वराकार स्व. महंत नरोत्तम दास महंत को सिर्फ हनुमान जी मंदिर में आजीवन पूजा पाठ की जिम्मेदारी दी गई थी, फिर वो सर्वराकार के रूप में कमान अपने हाथों में क्यों लिया। फिर उनके देहांत पश्चात उनकी इच्छानुसार नए सर्वराकार महंत नारायण दास को नियुक्त किया है। लोगों का कहना है कि पूर्व सर्वराकार स्व. महंत शंकरदास ने जब 1996 में ही वसीयत कर दिया था, तब फिर पूर्व सर्वराकार स्व. महंत नरोत्तम दास को सर्वराकार आखिर क्यों बनाया गया। उन्हीं के समय से वसीयत का उल्लंघन करते हुए निजी लाभ के लिए बेशकीमती भूमियों को जहां किराए में देकर लाभ कमाया गया तो वहीं लीज के नाम पर भी जमीन की खरीदी बिक्री की गई। लीज के मुताबिक, वसीयत का उल्लंघन करने पर लोक न्यास संचालन का कमान चांपा के गणमान्य लोगों के हाथों में होगा। लोगों का आरोप है कि अभी अपने निजी लाभ के लिए महंत के बाद उनके चेले को ही नए सर्वराकार बनाने की परंपरा बनाकर चंद लोग लोक न्यास व जनता की चल अचल संपत्ति व जेवरों का बंदरबाट कर रहे हैं।

यहां से शुरू हुआ बंदरबाट का सिलसिला

डोंगाघाट लोक न्यास की चल अचल संपत्ति का बंदरबाद किए जाने से शहर की जनता पहले ही नाराज है। चंद रणनीतिकारों ने पूर्व सर्वराकार स्व. शंकरदास के वसीयत की धज्जियां उड़ा दी। विवाद का जन्म 16 नवंबर 1997 को हुआ, जब वसीयत का उल्लंघन करते हुए महंत नृत्य गोपाल दास गुरू मनोहर दास को सर्वराकार नियुक्त करने के बजाय पुजारी नरोत्तम दास को सर्वराकार नियुक्त कर दिया गया। बताया जाता है पूर्व सर्वराकार स्व. शंकरदास के देहांत पश्चात ही डोंगाघाट लोक न्यास की चल अचल सपंत्ति में टेढ़ी नजर रणनीतिकारों की शुरू हो गई थी। पुजारी नरोत्तम दास को नए सर्वराकार बनाने के साथ ही सलाहकार समिति बनाई गई, जिसमें स्व. रूढ़मल अग्रवाल, स्व. नर्मदा प्रसाद, स्व. रामअवतार मोदी व बजरंग लाल डिडवानिया व बजरंग लाल मित्तल को शामिल किया गया।

8 लोगों की बनाई गई सलाहकार समिति

पुजारी स्व. नरोत्तम दास के बाद नए सर्वराकार के रूप नारायण दास को नियुक्त करते ही विवाद बढ़ गया। क्योंकि महंत नारायण दास ने अपने गुरू से भी एक कदम आगे बढ़कर आठ लोगों की एक सलाहकार समिति बना दी, जिसमें बजरंगलाल डिडवानिया, कार्तिकेश्वर स्वर्णकार, नंदकुमार देवांगन, मोहनलाल गुलाबानी, शैलेष डिडवानिया, किशोर मोदी, हनुमान कुमार देवांगन, दीपक सिंघानिया शामिल है। इन्हीं सलाहाकर समिति के पंजीयन का दावा किया गया है। लोेगों का यह भी कहना है यदि सलाहकार के रूप में समिति गठित की गई है तो फिर निर्णय लेकर 72 साल पुराने हनुमान व्यायाम शाला भवन को तोड़ने का अधिकार समिति को किसने दे दिया? ये बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि स्वयं बजरंगलाल डिडवानिया ने एक प्रतिष्ठित अखबार को दिए अपने व्यू में कहा है।

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