डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती 2025ः बाबा साहेब को श्रद्धांजलि

@हरि अग्रवाल
भारत सहित दुनिया भर में आज डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती बहुत ही उत्साह और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। आज सभी दिन सामाजिक न्याय के प्रतीक व भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
बाबा साहेब की बदौलत आज भारत के नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त है, जिसके बूते सभी लोग सिर उठा के बड़े शान से चल पा रहे हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर महान संविधानविद् के साथ समाज सुधारक, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री और मानवाधिकारों के हितैशी थे। उनके जीवन, संघर्श और योगदान पर विस्तार से आज चर्चा करने की जरूरत है।

बहिष्कार और भेदभाव से बने मजबूत
डॉ. अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल व मां का नाम भीमाबाई था। उनका जन्म अस्पृश्य माने जाने वाले महार जाति में हुआ था। बचपन से ही उन्हें जातीय भेदभाव, अपमान और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और शिक्षा को अपना हथियार बनाया।
विदेश में शिक्षा लेने वाले पहले दलित
बाबा साहेब का बचपन सामाजिक प्रताड़ना और जातीय भेदभाव से कुंठित होने के बजाय और दृढ़ता से गुजरा। वे बचपन से ही समझ गए थे कि शिक्षा ही वह हथियार है, जिससे इन सामाजिक बुराईयों में विजय प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से अर्थशास्त्र में पीएचडी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे भारत के पहले दलित थे जिन्होंने विदेशों से इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त की।
मुख्य शैक्षणिक उपलब्धिया
0 कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी
0 लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डीएससी
0 ग्रेज इन लॉ (बैरिस्टर एट लॉ)
छूआछूत के खिलाफ जंग
बाबा साहेब अंबेडकर का पूरा जीवन सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई से प्रेरित रहा। समाज में फैले छुआछूत और अपृश्यता के खिलाफ जंग इतना आसान नहीं था। समाज के ठेकेदारों और लोगों की रूढ़ीवादी सोच के खिलाफ जारी लड़ाई में कई बार बाबा साहेब कमजोर भी पड़े, लेकिन उनका मनोबल कमजोर नहीं हुआ। डॉ. अंबेडकर का जीवन सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई से प्रेरित रहा। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों को अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन चलाए।
मुख्य आंदोलनों में शामिल रहे
0 महाड़ सत्याग्रह (1927)ः अस्पृश्यों को पानी के अधिकार के लिए।
0 कालाराम मंदिर आंदोलन (1930)ः दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए।
0 जाति प्रथा और ब्राह्मणवाद के खिलाफ वैचारिक संघर्ष।
भारत के संविधान निर्माता
भारत को आजादी मिलने के बाद जब भारत का संविधान तैयार किया जाना था, तब डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्माण समिति का चेयरमैन बनाया गया। तब बाबा साहेब ने संविधान में मुख्य विशेशताएं जोड़ीं। डॉ. अंबेडकर ने संविधान को ऐसा स्वरूप दिया जो लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नींव पर खड़ा है।
0 समानता का अधिकार (आर्टिकल 14-18)
0 अस्पृश्यता का उन्मूलन (आर्टिकल 17)
0 न्याय, स्वतंत्रता, बंधुत्व के सिद्धांत
0 दलित, पिछड़े वर्ग और आदिवासियों को आरक्षण
बौद्ध धर्म स्वीकार किया
0 डॉ. अंबेडकर ने ’हिंदू कोड बिल’ प्रस्तुत किया जो महिलाओं के अधिकारों के लिए ऐतिहासिक पहल थी।
0 वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने।
0 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया और लाखों अनुयायियों के साथ धर्मांतरण किया।
डॉ. अंबेडकर के विचार
0 “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।“
0 “मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाए।“
0 “संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, यह एक जीवनशैली है।“
डॉ. अंबेडकर की जयंती का महत्व
हर वर्ष 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती मनाई जाती है, जो सिर्फ एक स्मरण दिवस नहीं बल्कि समानता और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है। इस दिन स्कूलों, सरकारी दफ्तरों, शिक्षण संस्थानों और सामाजिक संगठनों में विशेष कार्यक्रम होते हैं। कई राज्यों में यह सरकारी अवकाश भी होता है।
विविध कार्यक्रमों का आयोजन
आज डॉ. अंबेडकर जयंती 2025 पर कई कार्यक्रम हुए। संसद भवन और अंबेडकर स्मारकों पर माल्यार्पण किया गया। इस दौरान कई शैक्षणिक संस्थानों में भाषण, निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। रैलियां, जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि संदेश का आदान – प्रदान किया गया।
निष्कर्षः बाबा साहेब का सपना
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने एक ऐसा भारत सपना देखा था जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले। आज जब हम डॉ. अंबेडकर जयंती 2025 मना रहे हैं, तो हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि उनके बताए सामाजिक न्याय, समता और बंधुत्व के मार्ग पर चलें।