मातृदिवस विशेष पर विशेष आलेख: मां-अद्भुत,अद्वितीय ममता,प्रेम, वात्सल्य,दया करुणा स्नेह क्षमा अपनत्व की जीवंत प्रतिमा

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”
अर्थ: जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती हैं।“
माँ… एक ऐसा शब्द, जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का सार समाया है। वह केवल जन्मदात्री नहीं, बल्कि संतान की प्रथम गुरु, प्रथम सहचरी और जीवन की सबसे सशक्त प्रेरणा होती है। माँ के आँचल में छिपा होता है वह विश्राम, जो संसार के किसी कोने में नहीं मिलता।
माँ वह होती है जो बिना कहे सब समझ जाए, जो अपने सपनों की कुर्बानी देकर हमारी राहें आसान कर दे। वह स्वयं कष्ट सहकर भी सदा हमारे सुख की कामना करती है। माँ का स्थान न केवल परिवार में, अपितु मन, आत्मा और संस्कृति में भी सर्वोपरि है।
“मातृदेवो भव।” (तैत्तिरीयोपनिषद्)
अर्थ: माँ को देवता के समान मानो।
भारतीय संस्कृति में माँ का स्थान केवल एक परिवारिक सदस्य तक सीमित नहीं रहा है, वरन् उसे “देवत्व” की संज्ञा दी गई है। वेदों-उपनिषदों से लेकर महाकाव्य काल तक, जहाँ भी जीवन, प्रेम और त्याग की बात आती है, वहाँ माँ सर्वप्रथम दिखाई देती है।
वाल्मीकि रामायण में एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग आता है, जब भगवान श्रीराम वनगमन के लिए तैयार होते हैं। वे माता कौसल्या से विदा लेने जाते हैं। उस समय कौसल्या का हृदय संतप्त है, किंतु वे पुत्र धर्म के लिए आशीर्वाद देती हैं:
“धर्मिष्ठः सत्त्वसंयुक्तः सदा सत्यपराक्रमः।
तव पुत्र यशश्चैव वृद्धिश्चैव भविष्यति।”
(वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड)
अर्थ: “हे पुत्र! तू धर्मनिष्ठ, बलवान और सत्यशील रहेगा; तेरा यश और समृद्धि सदा बनी रहेगी।”
यहाँ माता का त्याग देखिए-वे अपने पुत्र के सुख की अपेक्षा उसके धर्म और कर्तव्य की सिद्धि को प्राथमिकता देती हैं।
“जब सारा जहाँ खामोश हो जाए,
माँ की दुआ ही है जो सब कुछ कह जाए।
उसकी हँसी में बसती है मेरी ज़िंदगी,
उसकी गोद में ही तो जन्नत मिल जाए।”
माँ वह है जो भाषा सिखाती है, पहला धर्म सिखाती है, और ‘कर्तव्य’ का बीज बोती है। भारतीय परिवार व्यवस्था की नींव माँ ही है- जो पीढ़ी दर पीढ़ी न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन-मूल्य भी हस्तांतरित करती है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का प्रेरक कथन:
“हमारी सबसे पहली शिक्षिका हमारी माँ होती है। मैंने अपने जीवन की हर मूल्यवान सीख अपनी माँ से ही पाई है।
हर वर्ष मई माह के दुसरे रविवार को मनायें जाने वाला मातृदिवस का पर्व हमें यह अवसर देता है कि हम माँ के प्रति अपना आभार व्यक्त करें-उन असंख्य बलिदानों, अटूट प्रेम और अपार सहनशीलता के लिए, जो उन्होंने हमारे लिए की।
आइए इस मातृदिवस पर हम सभी यह संकल्प लें कि हम न केवल अपनी माँ का सम्मान करें, बल्कि हर उस नारी का भी आदर करें, जो किसी न किसी रूप में मातृत्व की भूमिका निभा रही है-चाहे वह हमारी जन्मदात्री हो, शिक्षिका हो, समाज की कोई कर्मनिष्ठ नारी हो।
माँ केवल रिश्तों का नाम नहीं,माँ एक भावना है।जो जीवन भर हमारे साथ चलती है।
“चलो आज फिर माँ की ममता को सर झुकाते हैं,
जिसके साए में हम हर दर्द को भूल जाते हैं।
जिसकी दुआओं में है ईश्वर का ठिकाना,
उस माँ के चरणों में सारा जहान पाते हैं।”
डॉ रविंद्र द्विवेदी
शिक्षक एवं साहित्यकार
चांपा जांजगीर चांपा छग