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प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के आगे शिक्षा विभाग लाचार, तय दुकानों में अनाप शनाप कीमत पर मिल रही शिक्षण सामग्री, आंख मूंदकर स्कूलों को दी जा रही मान्यता

जांजगीर-चांपा। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के आगे शिक्षा विभाग लाचार है, जिसके चलते निजी स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसने शिक्षा विभाग कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहा है। इसका प्राइवेट स्कूल संचालक जमकर फायदा उठाते हुए पालकों पर अनाप-शनाप खर्चे का बोझ बढ़ा रहा है। चाहे तय दुकानों में ही शिक्षण सामग्री मुहैया होने का मसला हो, या फिर कुकुरमुत्ते की तरह नए स्कूल शुरू करने के लिए अनुमति देने का मामला। इधर, शिक्षा विभाग की नाकामी और स्कूलों संचालकों की मनमानी से पालक लुट रहे हैं।

कलान्तर में गुरूकुल और शिक्षा को महादान समझा जाता था। इस समय गुरू-शिष्य की परंपरा कायम थी। लेकिन बदले परिवेश में शिक्षा एक बड़ा व्यापार बन गया है। इस कारोबार में बेतहाशा आमदनी होने के चलते गली कूचों में भी नए-नए स्कूल खुल गए है। भले ही सरकार ने प्राइवेट स्कूल शुरू करने के लिए मापदंड तय किया है, लेकिन शिक्षा विभाग आंख मूंदकर नए स्कूलों को मान्यता दे दे रहा है। जिला मुख्यालय जांजगीर में ही कई ऐसे स्कूल संचालित है, जो सरकार के मापदंड को पूरा नहीं कर पा रहा है। कई स्कूलों में प्रसाधन तक की व्यवस्था नहीं है तो वहीं कई स्कूल जर्जर भवन में संचालित है। इतना ही नहीं, कई स्कूलों के पास खेल मैदान तक की व्यवस्था नहीं है। इन सबके बावजूद शिक्षा विभाग आंख मूंदकर इन स्कूलों का हर साल नवीनीकरण भी कर दे रहा है। ऐसे स्कूलों में अपने बच्चों को तालिम दिलाने वाले पालक मोटी रकम खर्चेने के बावजूद खुद को ठगा महसूस कर रहा है।

शिक्षण सामग्री का रेट सातवें आसमान पर
जिस तरह किसी एमबीबीएस डॉक्टर की पर्ची का दवा निर्धारित मेडिकल से ही मिलती है, ठीक उसी तरह निजी स्कूलों का शिक्षण सामग्री भी निर्धारित दुकानों पर ही उपलब्ध हो रही है। हालांकि सरकार की ऐसी कोई गाइड लाइन नहीं है, लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही और नाकामी के चलते निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है। इन दुकानों में महज 10 से 20 रुपए के नोटबुक की कीमत 100 रुपए है तो वहीं 40-50 रुपए की पुस्तक 200 से 250 रुपए में मिल रही है। यही हाल लगभग सभी शिक्षण सामग्री का है। खास बात यह है कि इन निजी स्कूलों की शिक्षण सामग्री चिन्हांकित दुकानों से ही मिल रही है, जिसके चलते पालकों पर शिक्षा का अनाप शनाप बोझ बढ़ गया है।

शिक्षा विभाग आखिर क्या कर सकता है!
इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी जांजगीर का कहना है कि चिन्हांकित दुकानों पर ही निजी स्कूलों की शिक्षण सामग्री अनाप शनाप कीमत पर मिलने की दिशा में शिक्षा विभाग आखिर कर ही क्या सकता है। जब हमनें इसके लिए शासन की कोई गाइड लाइन के संबंध में डीईओ से पूछा तो उन्होंने ऐसा कोई नियम नहीं होने का हवाला दिया। दूसरी ओर नए स्कूलों के लिए मान्यता देने या फिर नवीनीकरण के संबंध में बात की, तो उन्होंने कहा कि संबंधित ब्लाक के बीईओ की रिपोर्ट के आधार पर निजी स्कूलों के लिए मान्याता और नवीनीकरण किया जाता है।